spot_img

साइकिल पंक्चर बनाने वाला लड़का बना DM, IAS परीक्षा में 32वां रैंक, लहराया परचम

आईएएस अधिकारी वरूण बरनवाल की कहानी हमें बताती है कि पढ़ाई करने के लिए अगर कोई दृढ़ संकल्प वाला हो तो धन की कमी उसकी पढ़ाई में बाँधा नहीं बनती। साल 2013 की यूपीएससी परीक्षा में 32वां रैंक हासिल करने वाले महाराष्ट्र के बोइसर निवासी वरुण बरनवाल कभी साइकिल पंक्चर की दुकान पर काम करते थे इसलिए आज उनके सफल होने की कहानी आईएएस अधिकारी बनने की ख्वाहिश रखने वाले इस देश के हजारो-लाखों युवाओं को प्रेरित करती है।

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए वरुण बरनवाल बताते हैं कि 10वीं की पढ़ाई के लिए मेरे घर के पास में ही एक अच्छा स्कूल तो था लेकिन उसमें एडमिशन के लिए 10 हजार रुपये का डोनेशन लगता था। पैसे हमारे पास नहीं थे इसलिए मैनें मां से कहा कि यदि पैसे नहीं हैं तो मैं एक साल रूक कर अगले साल प्रवेश ले लूंगा, यह बात पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर साहब ने सुनी तो मुझे दाखिला करवाने के लिए 10 हजार रुपये दिए तब जाकर मेरा दाखिला हो पाया। दसवीं पास करते करते मुझे लगा कि अब आगे की पढ़ाई करना मुश्किल है क्योंकि उसके लिए अतिरिक्त धन लगेंगे जो मेरे पास नहीं थे। साल 2006 में दसवीं की परीक्षा खत्म होने के तीन दिन बाद ही मेरे पिता का निधन हो गया जिसके बाद मेरे हौसले और भी टूट गए लेकिन जब दसवीं के परिणाम आए तो मैंने अपने स्कूल में टांप किया था।

मैं खुद को बड़ा किस्मत वाला मानता हूँ क्योंकि मुझे अपनी पढ़ाई पर एक रूपए भी नहीं खर्च करने पड़ते थे मेरी किताबों, फीस, फार्म आदि सबका खर्च अक्सर कोई दूसरा ही उठाता था। दसवीं की शुरुआती फीस डॉक्टर साहब ने जमा कर दी फिर मेरे सामने हर महीने की फीस देने की चुनौती थी, इसलिए मैने पूरी शिद्दत से पढ़ाई करनी शुरू कर दी और कुछ ही दिनों में अध्यापकों की नज़र में आ गया और फिर मेरी घरेलू आर्थिक स्थिति को देखते हुए स्कूल के एक अध्यापक द्वारा मेरी दो सालों की फीस जमा की गई।

मेरी जिंदगी में एक समय ऐसा भी था जब मुझे साइकिल का पंक्चर बनाना पड़ता था। दो साल ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई मेरे लिए बहुत कठिन थी क्योंकि मैं सुबह 6 बजे उठकर स्कूल जाता था फिर शाम के 2 से रात के 10 बजे तक ट्यूशन पढ़ता था और फिर दुकान पर सारा हिसाब करता था। लेकिन इन सारी समस्याओं के बावजूद मैं पढ़ता गया क्योंकि मेरे घर वाले मुझे पढ़ने के लिए सपोर्ट करते थे, माँ कहती थी कि ‘हम सब काम करेंगे, तू पढ़ाई कर’।

इंजीनियिरिंग के पहले वर्ष की 1 लाख रुपये की किसी भी तरह से माँ ने जमा कर दी, जिसके बाद फिर से मेरे सामने आगे की फीस जमा करने की चुनौती थी। मैंने सोचा अच्छे से पढ़ाई करूँगा तो कॉलेज के टीचर ज़रूर मदद करेंगे, जब मैंने 86 प्रतिशत अंक हासिल कर कॉलेज में रिकॉर्ड बनाया तो अध्यापकों की नज़र में आ गया। एक अध्यापक ने मेरे लिए प्रोफेसर, डीन, डायरेक्टर से सिफारिश तो की लेकिन बात नहीं बनी जिसके बाद मेरी फीस मेरे दोस्तों ने दी।

मेरे पास कई अच्छी कंपनियों से जाब के आफर आ रहे थे लेकिन मैं सिविल सर्विस में जाने का मन बना चुका था इसलिए सारे आफर को ठुकराता रहा। मैं यूपीएससी की परीक्षा में सफल तो होना चाहता था लेकिन मुझे इसकी तैयारी के तरीकों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी फिर बाद में उनकी मदद को उनके भाई आगे आए। यहां तक की जब यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम आए तो उसे भी मेरे भाई ने ही बताया की मेरी परीक्षा में 32वीं रैंक आई है, यह सुनकर मैं थोड़ा भावुक हो गया था।

Must Read

Related Articles