भारत मे अगले महीने होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के लिए राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है | भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले महीने से ही बहुमत जुटाने के लिए देश के प्रमुख राजनीतिक दलों से संवाद शुरू कर दिये हैं वहीं दूसरी ओर विपक्ष द्वारा राष्ट्रपति चुनाव मे एन डी ए के खिलाफ साझा उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाने के लिए 15 जून को नई दिल्ली मे विपक्षी दलों की वैठक हुई जिसमे कुल 17 दलों भाग लिया | आगामी 18 जुलाई को होने जा रहे चुनाव के लिए अभी तक सत्ता पक्ष और विपक्ष ने आपने अपने उम्मीदवार को लेकर मंथन शुरू कर दिया है साथ ही कुल मत के 50 प्रतिशत पाने के लिए भी प्रयास शुरू कर दिये हैं | हालांकि इस बार सत्तापक्ष के पास पिछली बार की तरह चुनाव सहज प्रतीत नहीं हो रहा | पिछली बार एन डी ए के पास 21 राज्य, देश के 76 प्रतिशत क्षेत्र का वोट और 70 प्रतिशत आबादी का मत था लेकिन इस बार राज्यों की संख्या घटकर 17 हो गयी क्योंकि पिछले पाँच वर्षों मे भाजपा ने महाराष्ट्र ,तमिलनाडू ,राजस्थान ,छतीसगढ़ और झारखंड जैसे प्रदेश हारे हैं, साथ ही शिवसेना ,अकाली दल और पीडीपी जैसे सहयोगी भी खोये हैं |
इस तरह भाजपा के पास मात्र 49 प्रतिशत आबादी और 44 प्रतिशत क्षेत्र का ही मत रह गया है | इस प्रकार अपने राष्ट्रपति जिताने के लिए आवश्यक 50 प्रतिशत वोट की तुलना मे एन डी ए के पास लगभग 49 प्रतिशत मत ही है ,और उसे 1 प्रतिशत मत के लिए दूसरे राजनीतिक दलों को भरोसे मे लेना होगा | यदपि इस कड़ी मे प्रधानमंत्री मोदी बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक और आंध्रप्रदेश के नेता वाईआरएस कॉंग्रेस के जगन मोहन रेड्डी से दिल्ली मे पिछले जून के प्रथम सप्ताह मे भेट कर अपने पक्ष मे रखने का पूरा प्रयास कर चुके हैं | इन दोनों दल के समर्थन से संभव है कि एन डी ए प्रत्याशी चुनाव जीत जाए परंतु भाजपा पिछले बार कि तरह सम्मानजनक तरीके से 65 प्रतिशत मत लेकर अथवा विपक्ष के साथ आम सहमति वाला उम्मीदवार चाहती है जैसे 2002 के चुनाव मे केंद्र मे सत्तासीन अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने डा ए पी जे अब्दुल कलाम को विपक्ष के समर्थन से राष्ट्रपति बनाया था | इस प्रयास के तहत भाजपा के नेता राजनाथ सिंह ने एक ही प्रत्याशी पर सर्वसहमति बनाने के क्रम मे विपक्षी नेताओं का मन टटोला है | इसके अंतर्गत राजनाथ सिंह कॉंग्रेस नेता मलिकार्जुन खडगे ,टीएमसी नेता ममता बनर्जी ,अखिलेश यादव ,नीतीश कुमार ,झामुमो नेता शिबू सोरेन ,मायावती और शरद पवार से बात कर चुके हैं | भाजपा नेतृत्व ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए राजनाथ सिंह और जे पी नड़ड़ा को विभिन्न दलों से संवाद और संपर्क स्थापित करने की जिम्मेवारी सौपी है |
भाजपा ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया तेज कर दी है | यह तो तय है कि वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविद को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलने जा रहा है इस स्थिति मे जब उम्मीदवार चयन की बात आती है तो उसके पीछे चुनावी राजनीति और आगामी चुनाव वाले क्षेत्रों के वोटरों को साधने की मंशा ज्यादा प्रभावी दिखती है | भाजपा की ओर से जो संभावित नाम चल रहे हैं उनमे गुजरात से तालुक रखने वाली यूपी की वर्तमान राज्यपाल आनंदी बेन पटेल हैं | उनके प्रत्याशी बनने से इसी वर्ष गुजरात मे होने जा रहे विधानसभा चुनाव मे पटेल वोटरों को रिझाने का प्रयास होगा और दूसरी ,उनके महिला होने से महिलाओं मे भी एक संदेश देने का प्रयास होगा | हालांकि बस समस्या यह दिख रही है कि देश मे क्षेत्रीय संतुलन के हिसाब से पार्टी को यह न्यायोचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि भारत जैसे विशाल देश मे एक ही राज्य से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति होना राजनीतिक अपरिपक्वता दर्शाता है | वहीं दूसरे नजरिए से देखा जाए तो भाजपा 75 साल के इतिहास मे राष्ट्रपति न बने आदिवासी समुदाय से जुड़े लोगो को आगे करके कई समीकरणों को साधना चाहेगी |
एक तरफ देश मे आदिवासी वर्ग को अपने पक्ष मे करने का प्रयास होगा ताकि आगामी वर्षो मे आदिवासी प्रभाव वाले गुजरात ,झारखंड ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान और महाराष्ट्र मे होने जा रहे विधानसभा चुनाव मे आदिवासी वोटरों को साधा जा सके | इसमे जो नाम सबसे प्रबल चल रहा है उसमे झारखंड कि राज्यपाल रहीं द्रोपदी मुर्मू और मध्यप्रदेश कि रहने वाली छतीसगढ़ कि वर्तमान राज्यपाल अनुसूइया उएके का नाम महत्वपूर्ण है | इन दोनों के साथ महिला होना भी इनके पक्ष मे जाता है | एक महत्वपूर्ण नाम आल्पसंख्यक समुदाय से भी देखा जा रहा है | विगत वर्षों मे अलपसंख्यकों को लेकर भाजपा कि जो छवि देश से लेकर विदेशों मे बनी है ,उससे भाजपा सरकार भूत ही असहज दिखी है | इस स्थिति मे भाजपा अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी नजरिए मे परिवर्तन के दृष्टिगत अल्पसंख्यक समुदाय से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार दे सकती है |
इसमे अभी राज्यसभा चुनाव मे पुनःनिर्वाचन न पा सके केंद्रीय मंत्री मुख्तार नक़वी का नाम संभावित दिखा रहा है | क्योकि उनके राज्यसभा नही दिया और आभि रामपुर लोकसभा के लिए हो रहे उपचुनाव मे भी टिकट नही मिला जबकि वे पहले भी भाजपा से रामपुर से लोकसभा मे जा चुके हैं | इन परिस्थितियों को देखते हुये अल्पसंख्यक समुदाय से उनका नाम राष्ट्रपति के लिए सबसे ऊपर बताया जा रहा है | उसके बाद केरल के राजयपाल आरिफ़ मोहम्मद का भी नाम चल रहा है | सबसे महत्वपूर्ण बात कि भाजपा ने विगत चुनाव मे बिहार के राज्यपाल रहें रामनाथ कोविद को राष्ट्रपति हेतु नामित किया था | इसलिए राज्यपाल के पद से राष्ट्रपति के पद पर जाने कि पिछली परंपरा कोप देखते हुये यह कयास लगाया जा सकता है | वही एक अलग नाम कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का भी बार बार सुना जा रहा है ,लेकिन उनकी पुरानी प्रतिब्ध्ता उनके आड़े आ सकती है |
एन डी ए एक पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुये एक नाम तय कर सकती है | भारत जैसे देश मे एक बार उत्तर भारत से कोई राष्ट्रपति रहा है तो दूसरी बार दक्षिण भारत को प्रतिनिधित्व मिला है | पहले राष्ट्रपति उत्तर भारत से डा राजेन्द्र प्रसाद के बाद दूसरे राष्ट्रपति दक्षिण भारत से एस राधाकृष्णन हुये | 19 70 -80 के दशक मे दक्षिण के नीलम संजीवरेडी के बाद उत्तर भारतीय ज्ञानी जाईल सिंह ,उसके बाद दक्षिण के आर वैंकटरमन ,बाद के दशकों मे शंकर दयाल शर्मा के बाद के आर नारायनन राष्ट्रपति हुये | इसी परंपरा के देखते हुये वर्तमान उपराष्ट्रपति एम व नायडू का नाम भी प्रबल है | भाजपा के उस रणनीति मे भी जाव जगन मोहन रेड्डी और के चंद्रशेखर राव जैसे आंध्र और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों का समर्थन लेने के लिए दक्षिण भारतीत राष्ट्रपति संभावित दिखता है | हालांकि तमिलनाडू से जुड़े टी सुंदरराजन के नाम पर भी विचार हो सकता है | इसके अलावा पिछले राष्ट्रपति चुनाव मे जिस व्यक्ति का नाम अंतिम समय मे कट गया ,वे संभवतः वर्तमान मे कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद्र गहलोत भी ही सकते हैं |
विपक्षी भी एक मजबूत प्रतिकात्मक लड़ाई मे दिख रहा है | संभवतः 15 जून को हुई वार्ता के बाद एक साझा उम्मीदवार पर सहमति बनती दिख रही है | विपक्ष ने शरद पवार के नाम को आगे किया ,लेकिन उन्होने मना कर दिया | शरद पवार ऐसे राजनीतिक अनुभवी हैं जो बिना संभावनाओं के किसी चुनाव के विषय मे नहीं सोच सकते | कॉंग्रेस भी विपक्ष के साझा उम्मीदवार पर सहमति दे चुकी है | राज्यसभा मे नेता प्रतिपक्ष मलिकार्जुन खडगे ने कहा भी कि कॉंग्रेस साझा प्रत्याशी पर रचनात्मक भूमिका निभाएगी लेकिन प्रश्न यह उठता है कि प्रत्याशी कॉंग्रेस के भीतर से होगा या कॉंग्रेस के बाहर विपक्ष से होगा | लेकिन शरद पवार के पोइचने हटने के बाद एक नाम जो सबसे ज्यादा तवजों दिया जा रहा है वो कॉंग्रेस छोड़कर अभी विगत दिनों समाजवादी पार्टी के समर्थन से राजयसभा गए पुराने कोंग्रेसी कपिल सिब्बल हो सकते हैं | राष्ट्रपति चुनाव मे सत्तापक्ष का उम्मीदवार हो या विपक्ष का हो ,लेकिन एन डी ए सरकार की यह रणनीति है कि राष्ट्रपति के लिए एक ही उम्मीदवार पर दोनों की सहमति बने जिसके लिए भाजपा अध्यक्ष जे पी नड़ड़ा फारुख अब्दुल्ला ,पशुपति नाथ पारस ,कोनार्द संगमा समेत आजसू और नागा पीपुल्स फ्रंट के नेताओं से भी चर्चा की | राजनाथ सिंह के कॉंग्रेस के अन्तरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिलने की संभावना है | आब आने वाला समय बताएगा कि राष्ट्रपति के उम्मीदवार पर साझा सहमति बनेगी या सत्ता और विपक्ष के अलग प्रत्याशी होंगे |
डॉ जयदेव पाण्डेय
सहायक अध्यापक (राजनीति विज्ञान विभाग)
महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ,
वाराणसी